Search This Blog

Tuesday, 5 July 2011

"हनुमान चालीसा" - "Hanuman Chalisa"

श्रीगुरू चरण सरोज रज, नीज मनु मुकुर सुधारि
बरनऊ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फ़ल चारि ॥01
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन कुमार,
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहू कलेस विकार ॥02
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपिस तिहू लोक उजागर ॥1
राम दूत अतुलित बल धामाअंजनी पुत्र पवनसुत नामा ॥2
महावीर बिक्रम बजरंगीकुमति निवार सुमति के संगी ॥3
कंचन बरन बिराज सुबेसाकानन कुंडल कुँचित केसा ॥4
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजेकाँधे मुँज जनेऊ साजे 5
शंकर सुवन केसरी नंदनतेज प्रताप महा जगवंदन ॥6
विद्यावान गुनि अति चातुरराम काज करिबै को आतुर ॥7
प्रभु चरित्र सुनिबै को रसियाराम लखन सीता मनबसिया ॥8
सुक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावाविकट रूप धरि लंक जरावा ॥9
भीम रूप धरि असुर सँहारेरामचंद्र के काज सवाँरे 10
लाये सजीवन लखन जियाएश्री रघुवीर हरषि उर लाए ॥11
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाईतुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥12
सहस बदन तुम्हरो जस गावैअस कहि श्रीपति कंठ लगावै ॥13
सनकादिक ब्रम्हादि मुनिसानारद सारद सहित अहिसा ॥14
जम कुबेर दिगपाल जहाँ तेकवि कोविद कही सके कहाँ ते ॥15
तुम उपकार सुग्रीवहीं किन्हाराम मिलाय राज पद दिन्हा 16
तुम्हरो मंत्र विभीषण मानालंकेश्वर भये सब जग जाना 17
जुग सहस्त्र जोजन पर भानूलिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानु 18
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहिजलधि लाँघी गए अचरज नाहि 19
दुर्गम काज जगत के जेतेसुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥20
राम दुआरे तुम रखवारेहोत ना आज्ञा बिनु पैसारे ॥21
सब सुख लहैं तुम्हारी शरनातुम रक्षक काहु को डरना ॥22
आपन तेज सम्हारो आपैतीनों लोक हाँक तै कापै ॥23
भूत पिशाच निकट नहि आवैमहावीर जब नाम सुनावै 24
नासै रोग हरे सब पीराजपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25
संकट तै हनुमान छुडावैमन करम वचन ध्यान जो लावै ॥26
सब पर राम तपस्वी राजातिन के काज सकल तुम साजा ॥27
और मनोरथ जो कोई लावैसोहि अमित जीवन फ़ल पावै ॥28
चारों जुग परताप तुम्हाराहै प्रसिद्ध जगत उजियारा 29
साधु संत के तुम रखवारैअसुर निकंदन राम दुलारै ॥30
अष्ट सिद्धि नौ निधी के दाताअस वर दीन जानकी माता ॥31
राम रसायन तुम्हरे पासासदा रहो रघुपति के दासा ॥32
तुम्हरे भजन राम को पावैजनम जनम के दुख बिसरावै ॥33
अंतकाल रघुवरपूर जाईजहाँ जन्म हरिभक्त कहाई 34
और देवता चित्त ना धरईहनुमत सेहि सर्व सुख करई ॥35
संकट कटै मिटै सब पीराजो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥36
जै जै जै हनुमान गुसाईँकृपा करहु गुरु देव की नाई ॥37
जो सत बार पाठ कर कोईछुटहि बंदी महा सुख होई ॥38
जो यह पढे हनुमान चालीसाहोय सिद्धी साखी गौरिसा, 39
तुलसीदास सदा हरि चेराकिजै नाथ ह्रदय मह डेरा, 40
पवन तनय संकट हरन, मंगल मुरती रूप ॥
राम लखन सीता सहित, ह्र्दय बसहु सुर भुप ॥03

Please Share With your Friends..